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2009 का साल था। दिल्ली के एक कॉलेज से MBA की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही मुंबई में जॉब लग गई।
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एक साल जॉब करने के बाद वापस अपने गांव आ गया। उस वक्त शादी भी नहीं हुई थी
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जब बिहार आया, तो गांव के लोग कहने लगे, ‘जॉब छोड़कर गांव कौन लौटता है?
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शुरुआत में जब सचिन ने अपने रिश्तेदार-दोस्तों और घरवालों को सत्तू का स्टार्टअप शुरू करने के बारे में बताया,
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तो उनमें से कइयों ने सचिन का मजाक उड़ाया। कहते थे, 'सत्तू का कारोबार भी कोई आइडिया है।'
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जब मैंने लोगों के कमेंट्स को इग्नोर करना शुरू किया और ठान लिया कि
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सत्तू का ही स्टार्टअप करना है, तो कुछ दोस्तों और बाद में घरवालों ने भी सपोर्ट किया
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इस दिन नॉर्थ इंडिया में सतुआनी (सतुआन) मनाया जाता है। लोग खासतौर से सत्तू खाते या पीते हैं
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हमने इसे मार्केट में सटूज़ ( SATTUZ ) लॉन्च कर दिया, लेकिन स्टार्टअप को बूस्ट करने के लिए अधिक फंड की जरूरत थी
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कोलकाता के एक सेमिनार हमने एक एंजेल इन्वेस्टर को ग्लास में सत्तू घोलकर पिलाया। पीते ही वो शॉक्ड हो गए कि सत्तू को ऐसे भी बनाया जा सकता है?
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उन्होंने कहा, 'क्या चाहिए।' हमने उनसे फंड देने की रिक्वेस्ट की। और फंड मिल भी गया
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आज हमारे सत्तू की सप्लाई देश के अलावा अमेरिका, यूके, सिंगापुर, ओमान समेत दर्जनों देशों में है
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हर महीने 10 हजार पैकेट यानी 18 क्विंटल सत्तू की सप्लाई है। कंपनी का सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ और मुनाफा 30% है
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